हिंदी हैं हम शब्द-श्रृंखला में आज का शब्द है मुंडेर जिसका अर्थ है 1. दीवार का वह ऊपरी भाग जो छत के चारों ओर कुछ उठा होता है 2. खेत की मेड़। कवि नरेश सक्सेना ने अपनी कविता में इस शब्द का प्रयोग किया है।
रह-रह कर आज साँझ मन टूटे
काँचों पर गिरी हुई किरणों-सा बिछला है
तनिक देर को छत पर हो आओ
चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे निकला है ।
प्रश्नों के अन्तहीन घेरों में
बंध कर भी चुप-चुप ही रह लेना
सारे आकाश के अँधेरों को
अपनी ही पलकों पर सह लेना
आओ, उस मौन को दिशा दे दें
जो अपने होठों पर अलग-अलग पिघला है।
अनजाने किसी गीत की लय पर
हाथ से मुंडेरों को थपकाना
मुख टिका हथेली पर अनायास
डूब रही पलकों का झपकाना
सारा का सारा चुक जाएगा
अनदेखा करने का ऋण जितना पिछला है।
तनिक देर को छत पर हो आओ
चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे निकला है।
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