हिंंदी हैं हम शब्द - श्रृंखला में आज का शब्द है दर्पण जिसका अर्थ है कलई किया हुआ एक शीशा जिसमें प्रतिबिम्ब दिखाई देता है; आईना। कवि केदारनाथ अग्रवाल ने अपनी कविता में इस शब्द का प्रयोग किया है।
आज नदी बिलकुल उदास थी
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर-
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पांव घर वापस आया।
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