मजाज़ को बदनसीब शायर भी कहा जाता है। प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राणा ने अपनी किताब बगै़र नक़्शे का मकान किताब में इसका उल्लेख किया है।मजाज़ इश्क़ और शायरी में इतने मशगूल थे कि उन्हें अपनी सुध भी नहीं रहती थी। कभी कभार वह खुले अासमान में भी बेेेेहोश हो जाते।
मजाज़ के बारे में बहुत ही रोचक बातें लिखी हैं...
किताब के पेज नंबर 86 में उन्होंने असरार-उल-हक़ मजाज़ के बारे में बहुत ही रोचक बातें लिखी हैं। राणा लिखते हैं कि खुदा जाने मजाज़ के पैरों में कैसी बेडि़यां थी कि दरबदरी के वक्त खुल जाती थीं लेकिन अपने घर की तरफ लौटते वक्त मजाज़ को जकड़ लेती थीं।
हर आसाइश, ओहदा और रूतबा तलाशते फिरते हैं...
उन्होंने लिखा है कि मजाज़ की बदनसीबी का सबसे बड़ा सबूत क्या हो सकता है कि उनके नाम पर उनके अपने लोग जिनमें उनके करीबी रिश्तेदार भी शामिल हैं, अपने लिए दुनिया की हर आसाइश, ओहदा और रूतबा तलाशते फिरते हैं ।
घास तरशवाने का मौका़ नहीं मिलता...
लेकिन कभी भूले भटके उन्हें लखनऊ के निशातगंज के एक वीरान कब्रिस्तान में मजाज़ की कब्र पर उगी जंगली घास तरशवाने का मौका़ नहीं मिलता ।
एक टूटी हुई तुरबत पे भी एहसां करना...
मजा़ज की बदनसीबी पर भावुक मुनव्वर आगे लिखते हैं कि
जब कभी ताजा़ मजा़रों पे चरागां करना
एक टूटी हुई तुरबत पे भी एहसां करना
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मजाज़ के बारे में बहुत ही रोचक बातें लिखी हैं...