6 फरवरी 1915 को उज्जैन के बड़नगर कस्बे में पैदा हुए कवि प्रदीप ने अपने लिखे गीतों से लोगों की देशभक्ति भावनाओं को शब्द दिए। उन्होंने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से लेकर ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की’ तक गीत लिखे। इसके अलावा भी कितने ही नग़मे लिखे जिनमें या तो जीवन का दर्शन है, धर्म का आदर है या देश की मिट्टी के प्रति गर्व और कृतज्ञता है।
उनके लिखे एक देशभक्ति गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों’ के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनके ख़िलाफ़ वारंट जारी कर दिया था जिसके बाद उन्हें भूमिगत होना पड़ा । तो अन्य दार्शनिक गीत ‘न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे’ से अशोक कुमार इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा कि इस गीत को उनकी अंतिम यात्रा में बजाया जाए। ‘चल-चल रे नौजवान’ ने आजा़दी के समय में हुए आंदोलनों में नौजवानों के भीतर नई चेतना के राग फूंके। कुल मिलाकर कवि प्रदीप देश-राग के पर्याय हो गए थे।
लेकिन इन सबमें सबसे ख़ास है ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ जिसे गायिका लता मंगेशकर की आवाज़ में सुनकर तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों से आंसू छलक आए थे। यह गीत उन्होंने देश के शहीदों को याद करते हुए लिखा था और इस गीत की सारी रॉयल्टी शहीदों की विधवाओं के नाम कर दी।
कवि प्रदीप का वास्तविक नाम ‘रामचंद्र नारायण द्विवेदी’ था जिसे फ़िल्म- निर्देशक हिमांशु राय की सलाह पर उन्होंने प्रदीप कर लिया और लोग अभिनेता प्रदीप व गीतकार प्रदीप को लेकर भ्रमित न हों, उन्होंने अपना नाम कवि प्रदीप कर लिया। बचपन से ही गीत लिखने के शौकीन कवि के बारे में जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि - “प्रदीप जी दूरदर्शी थे, उन्होंने चित्रपट की क्षमता को पहचान कर एक सशक्त माध्यम के रूप में उसका इस्तेमाल किया”
विशेष तौर पर लिखे गए अपने देशभक्ति गीतों के लिए स्वयं प्रदीप कहते हैं कि - “देशभक्ति के गीत लिखना मेरा रोग है, मैं इस रोग से ग्रस्त हूं।”
सिनेमा और समाज को ऐसे गीत देने वाले इस महान गीतकार के हिस्से सिवाय दादा साहब फ़ाल्के के कोई और पुरस्कार न हुआ। 11 दिसंबर 1998 को 83 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी थी।
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1 month ago
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