हमीद हारुन जो कि पाकिस्तान के एक नामचीन अख़बार के सीईओ हैं। पत्रकार ओम थानवी उनसे जुड़ा एक वाक़या याद करते हैं।
कहते हैं कि हमीद की बुआ डॉ. शौकत हारुन से फ़ैज़ को प्रेम था। फ़ैज़ 1964 में कराची आ गए थे। वे यहाँ हमीद के दादा का नाम पर स्थापित कॉलेज के प्रिंसिपल थे और हारुन यतीमखाने का काम-काज भी देखते थे। यहां वे 1972 तक भी रहे।
हारुन हवेली में डॉ. शौकत को जिनके नाम पर अब कराची का सरकारी अस्पताल है- फ़ैज़ अपनी रचनाएं सुनाते थे। कुछ ग़ज़लें फ़ैज़ ने डॉ. शौकत को लेकर लिखी हैं, ऐसा माना जाता है। अरशद महमूद के मुताबिक ‘गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार चले’ डॉ. शौकत के लिए लिखी ग़ज़ल है।
अगस्त, 1968 में जब शौकत चल बसीं और रावलपिंडी में होटल फ्लैशमेन्स में फ़ैज़ को यह ख़बर दी गयी तो उन्होंने कमरा भीतर से बन्द कर लिया। वे तभी बाहर निकले जब उन पर एक मर्सिया लिख सके। कहते हैं कि उर्दू में यह सबसे मार्मिक मर्सियों में से एक है।
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