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दुष्यंत कुमार ने धर्मवीर भारती को लिखी शिकायती ग़ज़ल तो जवाब में भी ग़ज़ल ही मिली

Dushyant kumar writes ghazal to dharmveer bharti gets return
                
                                                         
                            एक बार दुष्यंत कुमार ने लेखकों को मिलने वाले कम पैसों को लेकर शिकायती लहजे में एक ग़ज़ल लिखी। यह ग़ज़ल उन्होंने पत्रिका 'धर्मयुग' के संपादक धर्मवीर भारती के नाम लिखी थी। ग़ज़ल कुछ यूं थी कि
                                                                 
                            

पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर
संपादकी का हक़ तो अदा कीजिए हुज़ूर

अब ज़िंदगी के साथ ज़माना बदल गया
पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिए हुज़ूर

कल मयक़दे में चेक दिखाया था आपका
वे हंस के बोले इससे ज़हर पीजिए हुज़ूर

शायर को सौ रुपए तो मिलें जब ग़ज़ल छपे
हम ज़िन्दा रहें ऐसी जुगत कीजिए हुज़ूर

लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप
शी! होंठ सिल के बैठ गए, लीजिए हुजूर आगे पढ़ें

धर्मवीर भारती की जवाबी ग़ज़ल

4 वर्ष पहले

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