मुहब्बत में अपने महबूब के साथ बिताया हर पल यादगार होता है। इश्क के सभी लम्हे इत्र की तरह होते हैं जिन्हें याद कर के अपने ज़हन को महकाया जा सकता है। इन्हीं लम्हों के साथ परवान चढ़ती मुहब्बत की हर कहानी मुकम्मल हो जाए ये भी शायद संभव नहीं। जहां दास्तानें अधूरी रह जाती हैं वहां सिवाय यादों के कुछ और सहेजने को नहीं रह जाता। इन्हीं अधूरे जज्बातों को दिल में समेट रहा है 1971 में रिलीज फिल्म 'पगला कहीं का' गीत तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे...
शंकर-जयकिशन के संगीत पर हसरत जयपुरी के बोलों को जब मोहम्मद रफ़ी की आवाज मिलती है तो वह बस नग़मा नहीं रह जाता, एक गहरा एहसास बन जाता है। यह गीत कितने ही दिलों की धड़कनों की गति बदल देता है। जैसे ढलती शाम न जाने कितने बीत चुके पलों को खींच कर ले आती है वैसे ही ये गाना हमें पुरानी यादों में खो देता है। ये गीत हमें तासीर देता है कि जिंदगी के सफर में पहली मोहब्बत से लेकर आखिरी इश्क़ तक के कई फ़साने आँखों के सामने से गुज़र जाएंगे।
तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
इस गीत में नायक अपने अतीत को याद कर रहा है और पूरे विश्वास के साथ कह रहा है कि उसकी प्रेयसी उसे भुला नहीं पाएगी। निश्चित ही उसका यह विश्वास इसलिए है क्योंकि उसने प्रेम के पलों को गहराई से जीया है और वो चाहता है कि वह जिससे प्रेम करता है उस पर वह हरपल अपनी छाप ज़रूर छोड़े। गाने की शुरुआती इन दो पंक्तियों को गाते वक़्त पीछे संगीत की विशेष ध्वनि नहीं है... मानो गीतकार इन शब्दों को ज़ोर देकर प्रेम का अटूट विश्वास दिला रहा है।
अधूरी मोहब्बत का दर्द...
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हो तुम मुझे यूँ ...
यह गाना पूरी फ़िल्म में दो बार फिल्माया जाता है और दोनों ही स्थिति में वह प्रेमी अलग-अलग परिस्थितियों का सामना कर रहा है।
इस फ़िल्म का किरदार सुजीत एक गायक है और अपनी प्रेमिका से बिछड़ गया है इसलिए वह इस उम्मीद के साथ इन बोलों को गा रहा है कि उसके गाए हुए गीतों को जब भी उसकी प्रेमिका सुनेगी तो वह भी साथ-साथ उन्हीं गीतों को गाने लगेगी। ये सभी प्रेम से जुड़े वह जज़्बात हैं जो रह-रहकर प्रेमिका को उसके प्रेमी की याद दिलाएंगे।
जब खयालों में मुझको लाओगे...
(वो बहारें वो चांदनी रातें
हमने की थी जो प्यार की बातें ) - २
उन नज़ारों की याद आएगी
जब खयालों में मुझको लाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हो तुम मुझे यूँ ...
अगर आप मोहब्बत में चूर हैं तो चांदनी रात में ये मदहोशी का आलम अपनी पूरी खुमारी पर होता है। चांदनी रातों में जो बातें सुजीत और उसकी महबूबा ने की हैं वो उसे तो याद है ही और अब वो उन्हीं रातों और बातों के विश्वास में कह रहा है कि जब-जब अनायास ही उसका प्रेम उसे याद करेगा तो उसे वह मंज़र याद आएगा, जब चांद तले मोहब्बत के पल बिताए जा रहे थे।
और सहारा लिया था बाहों का...
(मेरे हाथों में तेरा चेहरा था
जैसे कोई गुलाब होता है ) - २
और सहारा लिया था बाहों का
वो शाम किस तरह भुलाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हो तुम मुझे यूँ ...
अपनी मोहब्बत को जितनी उपमाएं दे दी जाएं वो कम ही हैं क्योंकि जिससे प्रेम हो जाता है उससे कीमती और उससे बेहतर देखने की कल्पना भी 'कल्पना' से परे है। जब प्रेमी ने प्रेमिका का चेहरा हाथ में लिया तो उसे लगा जैसे वह किसी गुलाब जैसा है। ये संसार के लिए अतिश्योक्ति हो सकती है लेकिन एक प्रेमी-ह्रदय व्यक्ति इन्हीं को यथार्थ मानकर जीता है।
रफ़ी साहब की लरजती आवाज़ जब कहती है कि 'और सहारा लिया था बाहों का तो मन के सबसे ख़ास तार झंकृत हो जाते हैं, इस गाने की यही सबसे हसीं खूबी है। यही सब इसे मेरा अज़ीज़ बना देती हैं। यह एक ऐसा नग़मा है जो दिल के हालत पर लिखा गया है और जिसके भाव हर आम प्रेमी के अंतर्मन को छूते हों वह निश्चित ही मेरा क्या और सभी का भी पसंदीदा गीत होगा।
झूठ मानूं तो पूछलो दिल से...
(मुझको देखे बिना क़रार ना था
एक ऐसा भी दौर गुज़रा है ) - २
झूठ मानूँं तो पूछलो दिल से
मैं कहूंगा तो रूठ जाओगे
हाँ तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे
इश्क़ में धड़कन को महबूब की तलब रहती है, कान उसकी आवाज़ सुनना चाहते हैं तो मन उसका एहसास करना चाहता है। आँखें तो बस उसका दीदार करना चाहती हैं। शम्मी कपूर अपने दिलकश अभिनय में आँखों की इन्हीं बेकरारी की बात कर रहे हैं और इश्क़ की क्या छुपी हुई परिभाषा हसरत जयपुरी ने अपने बोलों में लिख दी है। और वो यह है कि 'प्रेमी के शब्दों पर अगर भरोसा ना भी हो तो अपने दिल से उसकी सच्चाई पूछी जा सकती है।
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