वैसे तो महात्मा गांधी पर हिन्दी फिल्मों में कई गाने हैं लेकिन फिल्म 'जागृति' का गीत 'साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल...' ने जितना आम जनमानस को छुआ है संभवतः अन्य किसी गीत को वह प्रसिद्धि नहीं मिल पायी। गांधी जी पर कोई गाना सोचो तो सबसे पहले जेहन में यही गीत उभरता है- साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल । 1954 में आई फिल्म 'जागृति' के इस गाने को आवाज़ दी- आशा भोसले ने और लिखा था कवि प्रदीप ने। संगीत से संवारा हेमंत मुखोपाध्याय ने।
इतिहास में शायद ही कोई और दूसरा आदमी होगा जिसने सत्य, अहिंसा, दया, सहिष्णुता जैसे सौम्य मूल्यों में इतनी ज्यादा ऊर्जा भरी कि उस समय की लगभग संपूर्ण आबादी उस ऊर्जा की ग्राहक बन गई -
जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े
मजदूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिन्दू व मुसलमान सिख पठान चल पड़े
कदमों पे तेरे कोटि कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
सम्मोहन के पीछे का जो मंत्र
क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख, क्या ईसाई, मजदूर-किसान से लेकर अमीर-ग़रीब तक सभी उनके कदमों आहट मिलते ही पीछे चल पड़े। लेकिन इस सम्मोहन के पीछे का जो मंत्र था वह इतना सादा और सौम्य था कि किसी को इसकी क्षमता पर यकीन करना मुश्किल था।
'सत्य' और 'अहिंसा' ही गांधीजी का मूल सिद्धान्त है। गांधीजी के समस्त जीवन के उपक्रम को अगर किसी दो शब्द में कहना हो तो वह यही दो शब्द हैं। इन दो शब्दों पर आधारित जीवन का प्रयोग इतना असाधारण था कि आइंस्टीन ने उनकी मृत्यु पर कहा था – 'आने वाली पीढ़ी को मुश्किल से यकीन होगा कि हाड़ मांस का ऐसा कोई आदमी इस धरती पर चला था।'
गांधीजी की अहिंसा की शती के पीछे जो दर्शन था वह अभय का था। आमतौर पर गांधी के इन सिद्धांतों को कमजोरी का हथियार या तीसरी दुनिया की मजबूरी के हालत से जोड़ दिया जाता है।
मंगलवार की सुबह उनके प्रवचन को ‘मंगल -प्रभात’के नाम से प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक (पृष्ठ -28 पर) में लिखा है –“बिना अभय के दूसरी संपतें नहीं मिलेगी। बिना अभय के सत्य की खोज कैसे हो? ‘हरी का मार्ग शूर का मार्ग है, उसमें कायर का काम नहीं। सत्य ही हरि, वही राम, वही नारायण, वही वासुदेव है।”
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
गांधीजी के जीवन दर्शन और राजनीतिक दर्शन में कोई फर्क नहीं था । दूसरे शब्दों में कहें तो दर्शन और कर्म का अद्वैत । जब पूरी दुनिया में केवल बम के धमाके और युद्ध से राजनीतिक समाधान निकाले जा राहे थे और षड्यन्त्रों की कूटनीति चली जा रही थी तब गांधी ने 'सत्य' और 'अहिंसा' के अपने सौम्य नीति से पृथ्वी के सबसे बड़े साम्राज्य के पाँव के नीचे से उसकी नैतिक ज़मीन खींच ली।
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फकीर खूब करामात दिखाई
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
शतरंज बिछा कर यहां बैठा था ज़माना
लगता था कि मुश्किल है फिरंगी को हराना
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था दाना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो कस के दांव कि उल्टी सभी की चाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
फिरंगियों के 'फिरंगियत' के खिलाफ जो लड़ाई उन्होंने छेड़ी थी वह असाधारण, अविश्वसनीय और अकल्पनीय लड़ाई थी, कि एक तरफ षड्यंत्र, हिंसा, हथियार, लूट और साम्राज्यवादी मानसिकता दूसरी तरफ एक मानवता के पुजारी की दृढ़ता और संकल्प। हथियारों की टक्कर कुछ साधारण सामाजिक मूल्यों से। अंतत: उनके यही मूल्य जनसाधारण की ताकत बन गये।
सामान्यता ही उनकी महानता थी। वह आमलोग हों या लंदन का गोलमेज़ सम्मेलन, सभी जगहों पर उतने ही साधारण वस्त्र में गांधी जी विश्व के महानतम व्यक्तित्व से मुलाक़ात की। वह 'वर्धा' की गर्मी हो या लंदन की सर्दी सब में वह उसी सामान्य वस्त्र में रहे।
मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी
लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनियां में तू बेजोड़ था इंसान बेमिसाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
जग में कोई जिया है तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह में सबकुछ लुटा दिया
और जब ऐसे लोग इस दुनिया से जाते हैं तब महाकाल रोता है। लगभग दुनिया के के हर एक देश के प्रतिनिधि उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होते हैं....
मांगा न कोई तख्त न तो ताज ही लिया
अमृत दिया सभी को मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
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1 month ago
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