उस रोज़ खिड़की के बाहर बहुत तेज़ बरसात थी और मैं अंदर कॉफ़ी पीते हुए ईयरफ़ोन पर गाने सुन रही थी, बाहर की बारिश की आवाज़ तो नहीं आ रही थी लेकिन वह महसूस ज़रूर हो रही थी। यह संयोग ही था कि कान में सुनाई दिया
‘कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े’ कि मैंने खिड़की के बाहर देखा एक लड़की को बारिश में भीगते हुए। क्या यूं बारिश में जान-बूझकर भीगा जा सकता है? नहीं, जब ज़हन भीगा हुआ हो तो बारिश को सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है। बारिश में चेहरा आसमान को किए मैंने उस युवती को बारिश को स्पर्श करते देखा और यहां मेरे कानों में सुनाई दिया...
कितने दफे
कितने दफे दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफे?
वैसे तो तेरी ना में भी मैने ढूँढ ली अपनी खुशी,
तू जो गर हाँ कहे तो बात होगी और ही!
दिल ही रखने को कभी ऊपर ऊपर से सही,
कह देना हाँ... कहे देना हाँ... यूँ ही...
यूं तो दार्शनिकी भाषा में मुहब्बत में कोई व्यापार नहीं होता लेकिन अगर होता तो इकतरफ़ा मुहब्बत सबसे अच्छा सौदा होता, जहां फ़ायदे के नाम पर इश्क़ की बेक़रारी भी होंगी, ख़याल भी होंगे और सुकून भी होगा। कुछ यही तो कहता है ये गाना भी कि तू ना भी कह दे तो भी मैं ख़ुश हूं। ये बात तो इकतरफ़ा इश्क़ के ज़हन का मालिक ही कह सकता है।
कितने दफे
मुझे लगता है कि सामने छत्त पर बारिश को महसूस करती लड़की भी किसी से इकतरफ़ा मुहब्बत में भीगी हुई होगी। मिजाज़ कुछ यूं हुआ कि इस गाने के बोलों को दिल महसूस करने लगा। मन ने कहा कि वाह क्या गाना लिखा है राजशेखर ने और धुन तो जैसे कृष्णा ने आशिक़ों के लिए ही बनाई होगी कि तभी मोहित चौहान की रेशमी आवाज़ आई…
कितने दफे हैरान हुआ मैं ये सोच क
उठती है इबादत की खुश्बुएं क्यूँ मेरे इश्क़ से
जैसे ही मेरे होंठ यह छू लेते है तेरे नाम को,
लगे के सजदा किया कहके तुझे शबद के बोल दो
यह खुदाई छोड़ के फिर आजा तू ज़मीन पे, और जा ना कही, तू साथ रह जा मेरे...
ये सुनकर लगा कि इश्क़ में महबूब ख़ुदा है और उसका नाम इबादत, इश्क़ ही इकलौता ऐसा मजहब है जहां सबके ख़ुदा अलग हैं और सबके सजदे अलग। अगर सारी दुनिया इसी मजहब को अपना ले तो जन्नत की तलाश ख़तम हो जाएगी।
कितने दफे
कितने दफे मुझको लगा तेरे साथ उड़ते हुए?
आसमानी दुकानो से ढूँढ के पिघला दूँ मैं चाँद ये,
तुम्हारे इन कानों में पहना भी दूँ बूंदे बना,
फिर यह मैं सोच लूँ समझेगी तू जो मैं ना कह सका
पर डरता हूँ अभी ना यह तू पूछे कही, क्यूँ लाए हो ये, क्यूँ लाए हो ये... यूँ ही
वाह! प्रेमिका के लिए चांद, तारे तोड़ ले आने की परंपरा बहुत पुरानी नहीं हुई है। आज भी यह दिया जाता है कि चांद के झुमके बना दिए जाएं तो कैसा लगेगा? बहुत बेहतर लगेगा चूंकि जब दिल की बात ज़ुबां पर ना आ पाए तो कुछ इसी तरह अपने प्यार का इज़हार किया जाता है। मैं कुछ निष्कर्ष निकालती कि बोल सुनाई दिए कि अगर वह पूछ ले कि क्यूं लाए हो, क्यूं लाए हो? और गाना ख़तम हो गया।
अरे ख़तम क्यूं हुआ? लड़की अगर यह सवाल पूछकर, फिर मुस्करा कर वह चांद के बूंदे पहन ले, तब ? तब दिल का वो इकतरफ़ा सफ़र मुकम्मल हो जाएगा। मैंने यह सोचकर सामने देखा और सच, कि वह छत पर भीगती लड़की भी नीचे चली गयी थी, एक पल को लगा कि वहां कोई था या वह मेरी कल्पना थी।
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