बन्द बोतल पड़ी मयख़ाने में
तो बन्द बोतल ही है
अगर खुल गई
वो प्यालों में
तो फ़िर ग़ज़ल ही है
उग सके ना कोई
पेड़ कीचड़ में
खिल गया तो कमल ही है
छलक गए आँसू
उसकी आँख से
रोता नहीं वो
भावविह्ल ही है
ढल जाए जो हर आकर में
वो ठोस नहीं
तरल ही है
प्यार जो बाँटता
फिरे सभी को
वो व्यवहार सरल ही है
दिलों को जीत ले जो
अपने अंदाज़ से
वो गीत कोई और नहीं ग़ज़ल ही है
विरेन्द्र सिंह
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