ओ मेरी कलम
आज कुछ तो बोल
व्यथित मन है मेरा
अपने स्वर तो खोल
लिंखू पुनः कोई गीत
नैनों में भर स्मृति के मनमीत
या कविता कोई
जो वर्षों से उर में सोई
उतार दूं कागज पर
आज फिर कोई गुमसुम शाम
औ' अन्तर की गलियों में
गूंजता इक नाम
चुभता है अब उजाला
लगता अंधेरा प्यारा
दिल मेरा बहला दे
ग़ज़ल कोई गुनगुना दे
ओ मेरी कलम
आज कुछ तो बोल
व्यथित मन है मेरा
अपने स्वर तो खोल...
-वंदना अग्रवाल 'निराली'
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