गज़ब का इश्क़ करते है मतवाले, वतन से,
कुर्बान होते हैं, इश्क़ मुकम्मल होने तक!!
बे-मन से नहीं, मन से इश्क़ हो,
तन से नहीं, वतन से इश्क़ हो!!
तुमेश पटले "सारथी"
बालाघाट (म. प्र.)
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।