दुग्ध सदृश पैरों में जब झुनूर झुनूर पायल खनकती है,
मानो सावन घुमड़ - घुमड़ आये और घटा बरसती है,
कदम्ब टहनियों से हांथों में हरी चूडियों की खन-खन,
मानो गेहूं की बाली में मध्यम मध्यम हवा सरकती है,
तुम जब इतराकर कर चलती हो तो कमर बलखती है,
मानो भार कुमुदनी सह न पाए और डाल लचकती है,
तुम बोलो तो कलियां खिलती बाग में इत्र महकती है,
मानो योवन धुन पर नाच रहा और बुलबुल चहकती है,
‘सुमित’ होंठ उनके गुलाब पर्ण से भी ज्यादा गुलाबी है,
मानो भंवरा पीने को तड़पे और बिन जान निकलती है।
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