तुम हंंसीं जैसे तट पर
तुम हँसीं जैसे तट पर थिरकता पानी,
तुम हिलीं जेसे खेत मेंं,थिरकीं बालीं,
तुम चमकीं जैसे,
जैसे चमके लाल टेन में लाली,
तुम आयीं जैसे,ह्रदय के छत्ते पर धीरे-धीरे,
आता है रस,
जैसे छूते-छूते बन जाये शहद,
तुम दिखीं
जैसे कोई बालक,
सुना रहा है कहानी,
तुम हँसी
जैसे तट पर थिरकता पानी,
तुम हिलीं
जेसे हिलतीं खेत में बालीं,
जैसे लाल टेन के शीशे में झाँकती लाली,
तुम छुओ
जैसे उपवन में धीरे-धीरे,
गर्म हवा पकातीं है डाली,
जैसे गर्म हवा पकातीं हैैैं खेताेेेंेंकी फसलाेेें को,
तुमने मुझे पकाया,
और जिस तरह,
जिस तरह दाने-दाने अलगाये जाते हैं ,
तुमने मुझको खुद से अलगाया/
कवि खत्री भेल बनारशी
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