आज कलम उठायी,और टाइटल डाला मैंने "भाई"
कलम भी बोल उठी, हर्फ़ कम पड़ जायेंगे गर लिखने चली भाई की अच्छाई...
वो अंधेरों में भी चिराग है
वो बहनों का आफ़ताब है
वो सुनी सड़क पर बहन का कवच है
वो माँ की आंख का तारा है
वो पिता के कंधो का सहारा है
वो बहन के बेख़ौफ़ होने का कारण है
वो ख़ुदा की हर बहन को दी हुई अमानत है
वो भाई ही है जो हर बहन का रक्षक है
वो बहन की हर समस्या का समाधान है
वो बहन की एक आवाज पर हाज़िर है
जिससे बहन की हर ख़्वाहिश मुक्कमल है
गर है वो छोटा भाई तो बहनों का खुशनुमा जीवन है
गर है वो बड़ा भाई तो बहनों का सुरक्षा कवच है
एक बहन को गन्दी नजर से कोई देख ले तो,
वो साक्षात "रुद्र" स्वरूप है
वो भाई ही है जो किसी पिता से कम नहीं
बहनों के महफूज़ होने का कारण है एक भाई
भाई है तो बहन का जीना आसान है
भाई से ही बहन का हर सपना साकार है
भाई है तो भाईदूज है ,राखी एक त्योंहार है
भाई-बहन का रिश्ता तो ,रब की बनाई एक सौग़ात है
भाई से ही मुस्तक़बिल में, ख़ुशहाली-ए-अय्याम है ।
स्नेहा पारीक
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