ये दिल पत्थर है कभी धड़कता ही नहीं,
जिसमें जान होती है वो तड़पता है ये तड़पता ही नहीं।
इस गुरूर में मत रहना कि हम कैसे जियेंगे तेरे बिन,
आइना टूटता जरूर है मगर हकीक़त बदलता ही नहीं।
तुझे मेरी ख़ामोशी पढ़ना आया ही नहीं,
जो बादल गरजता है वो कभी बरसता ही नहीं।
उठकर गिरना,गिरकर उठना ही तो जिन्दगी है,
पर जो दूसरों को गिराता है वो कभी संभलता ही नहीं।
सुख के बाद दु:ख और दु:ख के बाद सुख ही आता है,
पर जिसने धैर्य खो दिया उसका सवेरा कभी होता ही नहीं।
एक मन से दूसरे मन का सफ़र ही तो प्यार है 'शिवचरण',
जिसमें चाहत हो जिस्म की वो कभी प्यार होता ही नहीं।
-शिवचरण सदाबहार
8696940537
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें