अपनी गलतियों से ही लगती है आग घर में,
पर बेचारे दीये को दोष, क्यों दिया जाता है !
अपनी गलती से डूब जाते हैं तैराक दरिया में,
पर दरिया को सारा दोष, क्यों दिया जाता है !
अपनी गलतियों से मुसाफिर खाता है ठोकरें,
पर निर्दोष राहों को दोष, क्यों दिया जाता है !
अपने कर्मों से ही होती हैं नाकामियां हासिल,
हमेशा वक़्त को ही दोष, क्यों किया जाता है !
सारी हरकतें तो करते हैं दबंग और बड़े लोग,
फिर निर्बल को सारा दोष, क्यों दिया जाता है !
शांती स्वरूप मिश्र
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