पढ़ी है किताबें जाग सारी सारी रतियाँ
पढ़ लेते कभी तो मेरे मन की भी बतियाँ।।
न पाने की चाहत ना खोने का ग़म है
होती नहीं आंँखियाँ ये भी अब तो नम है ।।
जानते हैं ना आओगे बांध के सेहरा
तनहाइयों से अब तो रिश्ता है गहरा।।
शैलजा।।
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