आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

तनहाई

                
                                                                                 
                            पढ़ी है किताबें जाग सारी सारी रतियाँ
                                                                                                

पढ़ लेते कभी तो मेरे मन की भी बतियाँ।।

न पाने की चाहत ना खोने का ग़म है
होती नहीं आंँखियाँ ये भी अब तो नम है ।।

जानते हैं ना आओगे बांध के सेहरा
तनहाइयों से अब तो रिश्ता है गहरा।।

शैलजा।।

हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
1 year ago

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही