मैं जाऊँगी तुम्हें हँसता हुआ छोड़ कर...
स्मृतियों की छाया भी ले जाऊँगी समेट कर
जाऊँगी तुम्हारे सारे गिले शिकवे मिटा कर
तुम्हारा यूँ बात बात पे मुझसे लड़ना
तुम्हारी गलतियों का ताज यूँ मेरे ही सर धड़ना
तुम्हारी दीवानगी, तुम्हारा बचपना
सब अपने साथ ले जाऊँगी
मैं जाऊँगी तुम्हें हँसता हुआ छोड़ कर
खुश रहो तुम यही चाहा है यही चाहूँगीं
मैं जाऊँगी तुम्हें हँसता हुआ छोड़ कर
तुम वजह मेरे जाने की न ढूँढ पाओगे...
मुझमें ज़ज्ब़ वो तुम
क्या कभी ढूँढ पाओगे ?
जिंदगी और मौत के बाद के हर जीवन में
मुझे तो तुम ही याद आओगे
जब भी याद आएगी तुम्हारी
शिकायतें ले जा रही हूँ
मैं खुदा को सुना दूँगी
कभी हँस कर कभी रोकर
तुम्हारी याद गुनगुना लूँगी
इसी भवसागर में मैं भी तो मुस्करा लूँगी
तुम्हें उदास रहने की न कोई वजह दूँगी
काली बदरियों को मैं हटा दूँगी
ख़लिश का काटाँ न तुम्हें चुभने दूँगी
कोई हो दर्द ,की टीस
न हो इन्तहा कि इब्तिदा दूँगी
मैं जाऊँगी तुम्हें हँसता हुआ छोड़ कर
तुम्हें चाहा है, तुम्हें ही चाहूँगी
मैं तुम्हें हँसता हुआ छोड़ जाऊँगी
-डा. शफ़क़ रऊफ
अररिया (बिहार)
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