मेरे आँसुओं की ये कैसी तक़दीर है
आस्मां में टूटते तारों सी लकीर है
यह गिरके ज़मीं पे न जाने कहाँ खो रहा है
मेरे संग संग आज आसमान भी रो रहा है
आफताब की रोशनी बर्फीले पर्वतों से गुजर रही है
सर्पाकार नदिओं में जाने क्यों इतनी हलचल सी मच रही है
यह उफनती नदी पहाड़ों को रौंदकर जलवा मैदानों को दिखा रही है
पानी की यह हलाहल ज्वाला सब- कुछ खुद ही में समाती जा रही है
मेरे यादों के साये दिल पे बादल बनकर हैं छाए
इन बादलों से बेमौसम बरसात हो रही है
भीग रही है सारी ज़मीं भीग रहा है सारा आसमान
खुली हुई धुप में भी यह कैसी बरसात हो रही है
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