दो वचन हमें तुम हे प्रियवर ! आजीवन साथ निभाने का।
निज प्राण _प्रिया के रूप में, सारे अधिकार दिलाने का।
है यही कामना जब अपना, गृह त्याग तेरे घर आऊं मैं।
इक गृह को बिसरा कर के, दूजा परिवार बसाऊं मैं।
इन स्वप्नों और आशाओं को, अब अपना स्वप्न बनाने का!
दो वचन हमें तुम हे प्रियवर! आजीवन साथ निभाने का।
सहगामी बनकर साथ रहें।
निज हाथ में तेरा हाथ रहे।
ये प्रेमपूर्ण जज़्बात रहे,
सन्देह की न कोई बात रहे।
निज मित्र बना हमको अपने,
नव _जीवन में अपनाने का!
दो वचन हमें तुम हे प्रियवर! आजीवन साथ निभाने का।।
- सलोनी उपाध्याय
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2 months ago
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