जंजीरों से ज़माने की,
जिन्हें कभी कर ही नहीं पाए बयान।
न चाहत है दौलत की,
न चाहिए मुठ्ठी में आसमान।
बस! उम्मीदों से भरें हों पंख मेरे,
और, जुनून से भरी हो, मेरी उड़ान।
मोहब्बत के काबिल रहे, शख्शियत़ मेरी,
और मोहब्बत ही रहे मेरी पहचान।
मोहब्बत के खिताब से नवाजे़! ये जहां हमें,
मोहब्बत़ करे हमसे, यहां का हर इन्सान।
काबिलियत रखें! हर जख्मों से उबर जाने की,
शिकस्त का अल्फाज़ भी भूल जाए,
मेरी ये ज़बान।
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2 months ago
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