हम सभी आज के दौर में कुछ अजीब लगते हैं
बढ़ते तो आगे हैं पर चलते पीछे हैं
आज की इस चलती फिरती दुनिया में
तन्हाई का भी अजीब सा आलम है
पैगाम बहुत मिलते हैं पर कोई हाल नहीं जानता
बोलते तो सब हैं पर कोई बात नहीं करता
दोस्त तो सब बनते हैं पर दोस्ती कोई नहीं करता
ये भीड़ है मेले की पर साथ कोई नहीं होता
ये दौर ए मोहब्बत है पर ऐतबार कोई नहीं करता
बड़ी होशियारी से मिलते हैं सभी
बस होशियार ही कोई नहीं होता
चंद छोटे लालच में आकर
लोग ज़मीर खो देते हैं,
सच्चे रिश्ते भी दांव पे लगा देते हैं
करके ऊँचा कद खुद को नीचा कर लेते हैं
बड़ा सुंदर सा जीवन जो मिला है
उसमें न जाने कितने प्रश्न लगा देते हैं
छोटे से जीवन प्रवाह को न जाने
कितने ही बांधों में बाँध देते हैं
जरूरत बस एक मुस्कान की होती है
पर इसे सच्चा बनाने में पूरी उम्र गँवा देते हैं
क्यों दिखावे का सुरूर हम सब पे यूँ छाया है
कि जीवन का असली मज़ा यूँ ही किया ज़ाया है
चलो पहले से बेगुनाह हो जाते हैं
बच्चों से मासूम ता उम्र हो जाते हैं
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