कहना तो बहुत कुछ है, मगर कहूं कैसे?
दिल की बेचैनियों को मैं बयां करूं कैसे?
सोचा था कि खुद ब खुद ही समझ जाओगे,
प्यार की सौगात लेकर के तुम आओगे।
तुम न समझे न लौटकर आए,
गहराते रहे मायूसियों के साए।
मीलों तक पसरी ख़ामोशी है,
सूनी दिल की मेरी महफ़िल है।
काश होता कि तुम कहीं से आ जाते,
कश्मकश को मेरी खत्म कर जाते।
रह गई यह चाह भी अधूरी मेरी,
बुझ न सकी दिल की प्यास मेरी।
तुझसे मिलने की अब भी आस क्यों है?
हर घड़ी फिर भी इंतजार क्यों है?
कल्पना सिंह
आदर्श नगर, बरा, रीवा (मध्य प्रदेश)
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