आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

मातृ शक्ति

                
                                                                                 
                            औरत है एक अबूझ पहेली।
                                                                                                

कभी तो फुसकारती नागिन कभी मीठी जलेबी।।

कभी तो ममता की मूरत कभी खड़ग लिये हाथ काली।
कभी रह जाती अवला कभी परम शक्तिशाली।।

कभी माँ की ममता है,कभी बहिना का प्यार है।
कभी बहू बन सेवा करती ,कभी साजन की करती मनुहार है।

कभी बुआ बन करती दुलार,कभी बेटी बन पौंछती आंसू।
बेटी को न मारो कोख में,ये संदेश दे रहा यहाँ सूं।
बेटी ही न होगी ,बहिन बुआ ,पत्नी का रिश्ता बनायेंगे कैसे।
बेटी ही न रहेगी तो बहु लायेंगे कहां से।।
विद्योत्तमा ,गार्गी ,सावित्री,रानी पदमावती ,लक्ष्मीबाई और कितने ही नाम याद करूं।
सरोजनी नायडू ,कल्पना चावला,लता मंगेशकर,अरूणिमा सिन्हा,बद्देन्दीपाल ,औरइन्दिरा नेहरु।।
जय मातृ शक्ति ,इसकी शक्ति का न कोई पार है।
"मुकेश" कह न सको इसकी,महिमा बड़ी अपार है।।

प्रेषक -राजनारायन varshney"मुकेश " 
माँखन गंज ,मैन बाजार द्दाता (मथुरा )
मो नः 9412329079,92 19241516


हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। 

आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।



 
5 years ago

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही