काव्य रूप एक थाल सजा चरणों में अर्पण करता हूँ
दोष द्वेश गुण राग आदि सब मातृ समर्पण करता हूँ
जननी साधारण शब्द नहीं महादानी सुख की दाता है
सदा धरा में व्याप्त श्रेष्ठ माता जन भाग्य विधाता है
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