ये ऊँची ऊँची इमारते मैं नहीं देखता हूँ
ये बड़ी बड़ी गाडियाँ मैं नहीं देखता हूँ
सिर्फ कागज कलम दे दो मुझे तो यारो
ये शान-ए-शोहरत मैं नहीं देखता हूँ ।
महबूब को महबूबा से मुहब्बत हैं
महबूबा को महबूब से मुहब्बत हैं
मैं तो शायर कवि हूँ यारों
मुझे तो मेरी शायरी और कविता से मुहब्बत हैं ।
हर चीज़ को मैं अलग नजरिये से देखता हूँ
आँखों में मधुशाला और जुल्फो में लहरे देखता हूँ
कोई कुछ भी कहे , तो कहने दो उसे
मैं तो शायर और कवि हूँ हर जगह शायरी और कविता देखता हूँ ।
अपनो और गैरो के लिए लिखता हूँ
हिन्दू और मुसलमान के लिए लिखता हूँ
मैं तो शायर कवि हूँ यारों
अपने मुल्क हिंदुस्तान के लिए लिखता हूँ ।
कवि को बदनाम मत किया करो उन महफ़िलो में
कवि को बदनाम मत किया करो उन आवारा गलियों में
कवि होना कोई आम बात नहीं न कवि कोई आम शख्शियत है
इसलिए कवि का सम्मान किया करो हमेशा उन महफ़िलो में।
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