जो है हक़ हमारा,उसे भी मांगना पड़ता है
पग-पग पर निगरानी,पग-पग पर मर्यादाये बतलाते है
है क्या अस्तित्व हमारा,ये हमें समझाते हैं
मैं नारी हुँ, हर पल ये अहसास कराया जाता हैं
हर रूप में,हर रिश्ते में
हर कर्त्तव्य निभाती हूं
है क्या अस्तित्व हमारा,फिर भी ये हमे समझाते हैं
मेरा क्या है, मुझे तो ब्याह के मंडप तक बैठाना हैं
देकर दहेज फर्ज निभाना है
मेरा अस्तित्व तो कही किसी आंगन में
घूंघट के नीचे पलता है
संसार सृजन का दायित्व मुझ पर
नवजीवन धरती पर लाती हूं
फिर भी है क्या अस्तित्व हमारा,ये हमें समझाते हैं
-पूजा रमा त्रिपाठी
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