आज तुम बिन एक सावन बीत गया
आज तुम बिन एक सावन बीत गया
पत्रों की झर झर ध्वनि में
अनुभूति कुछ थी तुम्हारी,
पयोदो मे छुपी कौमुदी में
अनुकृति कुछ थी तुम्हारी,
मगर वर्तमान के ही संग संग
जैसे कोई अतीत गया...
आज तुम बिन एक सावन बीत गया.
प्रस्तरों पर प्रेम के चित्र
अंकित हैं अभी भी,
तेरे पल प्रतिपल के शब्द
मन में संचित हैं अभी भी,
मगर ब्याल के मुख से
विष भला कैसे छूटे...
दर्प में ही तो संसार से
सारा विनीत गया....
आज तुम बिन एक सावन बीत गया.
विचारों मे मेरे भी
विरोधाभास खूब रहा है,
मन के तड़ाग में मेरे
तू घुट घुट कर डूब रहा है,
नखत श्वेत है, श्वेत रहने मे ही
जग की भलाई है...
उन श्वेत नखतों पर कोई
स्याह रंग सा छींट गया...
आज तुम बिन एक सावन बीत गया...
आज तुम बिन एक सावन बीत गया...
यह कविता एक विरह भाव को प्रकट करती हुई नाराज़गी दर्शाती है, यह प्रेम के प्रति मोह भंग का पर्याय है।
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