उम्र बढ़ी
कद बढ़ा
खुराक बढ़ी
अचंभित हूं
सोच क्यों न बढ़ी?
फ़ैशन बढ़ा
शैली बढ़ी
धन सम्पदा बढ़ी
व्यसन बढ़ा
अचंभित हूं
सोच क्यों न बढ़ी?
आकांक्षा बढ़ी
वस्तु बढ़ी
मूल्य बढ़ा
जीने केेे वसूल बढ़ा
अचंभित हूं
सोच क्यों न बढ़ी?
कलम से:-अनमोल मुन्ना (एकलव्य)
ग्राम कटेया पोस्ट केशरी मठिया थाना
जनता बाजार जिला छपरा (सारण)
बिहार
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।