सन्नाटे को चीरती हुई,हवा
आलीशान बने महल के पाये से टकराईं,
सांय सांय करती हुई,हवा
दालान के हर कोने से गूंजती
परकोटे में बसे कबूतरों के कर्ण छिद्रों से टकराई,
जागकर ऊड़े कबूतर जो पंख फड़फड़ाई
,भंग होती निद्रा, दालान के चौकीदार को जगाती
रात की खामोशी और सन्नाटे को देख चौकीदार दालान से सटे
दरख़्त से गुजरती हवा की सरसराहट से सिहर उठा
याद आई कभी बीते सालों पहले दालान के कुंवर इसी दरख़्त
के तले अंतिम सांसें लेकर विदाई दे रहे थे ।
इस भव्य महल में कभी रंगीन,नजारे
, शहनाइयां गूंजा करती थी,
रोशनदान से झलकती
चिलमन से चमकती आंखों की बिजलियां।
हंसी और खुशी से खिलता परिसर वो ऊंचे महल की दीवारें
पतंगें उड़ाते कुंवर और कुंवरानी,प्रेम की हवा बहाती फिजाएं,
नज़र लग गयी दुश्मनों की ,महल पे
हुकुमत करने की षड्यंत्रों
से बुने जालों में कुंवर के उलझनें की प्रतीक्षा में आतुर
दरिंदों ने महल के दरों दीवारों में मचाई चीख पुकार,
अग्नि की ज्वाला दहक उठी मचा चारों ओर हाहाकार,
कुंवर तक दुश्मनों ने खबर थी,पहुंचाई,
सती हो गई एक और पार्वती
गंगा सी पावन पवित्र वो नारी ,
अग्निशिखा में जगमगाई
जौहर की चिंगारी वो रानी तुम्हारी
महल को वीरान कर गयी कुंवरानी।
कुंवर के प्राण पखेरू हो गये,सुनकर
कुंवरानी के सती होने की बात सहन न कर सके
दरख़्त के सहारे ही आंखें बंद कर चिर निद्रा के आगोश में समाते हुए
दालान की भूमि वीरान कर गये।
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3 months ago
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