शाम के धुंधलके में दिया जलाती मां
तुलसी ,चौरे पर धूप दिखाती मां !
दिये का प्रकाश बिखेरती मां!तुलसी से कहती
बेटा तेरा ही सरहद पर सीना,
ताने, मिट्टी का फर्ज
निभाता है,कब अंधियारा आए
और कब उजियारा आए,
खबर उसे तो बस इतनी की देश
कि सीमा पर दुश्मन न आए।
कितने देशद्रोही और कितने गद्दार
सीमा पर ही हैं नजरें गड़ाए।
सैनिक,बन पहरेदार
वो रखवाली करता रात्रि की चिर नीरवता
को खंडित करता,चौकस रहता,
सन्नाटा इतना गहरा कि स्वयं की धड़कन सुन
बंदूकें,ताने हरदम रहता तैयार
अग्नि परीक्षा से भी अधिक कड़ी
सीमा चौकी की सुरक्षा में अपलक
निर्निमेष सैनिक समर्पित रहता।
भूली बिसरी यादों को वक्त की तपिश
के हवाले करता,मां के आंचल ,पिता की सीख
भाई की हिम्मत,बहन की दुआएं नम आंखों
से पलकें चुराकर मुस्कान से
और सैनिकों के हौसले
आफजाई में,सब भूल और बिषर जाता।
मां को चिट्ठी लिखकर डाकखाने जाना भी भूल गया,
कब शहीद होने का स्वर्णावसर आ जाए
मां बेटे की चिट्ठी की प्रतीक्षा में हर पल तुलसी चोरे
में दिया जलाएं,बेटे के लम्बी उम्र की कामना में हर दिन
दीप जलाएं,
कैसी विडम्बना है कैसी सरहद की सीमा है
बेटे की चिट्ठी की आस में
मां दिन भर भूखी प्यासी रह जाए
एक सैनिक है एक मां ही है पहरेदार
अपने जलते दीपक की लौ से लगाती
बेटे के लम्बे उम्र की आस।
मां का कलेजा बेटे को देता रहता सहारा,
आंधी आए या तूफान
सरहद ही उसका जीवन देशभक्ति ही उसकी प्यास
धन्य है वो मां जो जनती ऐसे बेटे
दे अपनी लहु से सींचती रहती धरती की गोद को।
संवारती नव यौवन पीढ़ी को देती एक नयी आस।
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2 months ago
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