ऐ मेरे रचयिता, तेरे सृष्टि के समन्दर
में तेरे जीवन की कश्ती में
अकेली मैं ही नहीं
मेरे साथ तेरे दरिया का किनारा भी है
यकीं है मुझे मजधार कैसी भी हो
तेरा सहारा तो है.
तूने पतवार थाम रखी है
ये जर्रे जर्रे को पता है
मैं कश्ती में अकेली ही नहीं
तेरी रहमतों की दरिया
भी है
नजारा भी है सहारा भी है
तुझे जो दिल से पुकारा है
सर पर हाथ तेरा ही है, न मैं अकेली न ये
दरिया अकेला है
लहरें भी साथ है तरंगें भी साथ हैं।
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2 months ago
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