एक जर्जर वीरान सा खंडहर मकान
जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंचा दालान,
महल सी शानो शौकत होगी ,कभी ये
गाथाएं रचती,दरों दीवारें , बीच से फटी
दीवारों से उगा होगा एक पीपल का पेड़
परिंदों ने अपने चुगे दाने से गिराया होगा
वक्त की तपिश के साथ मेघों ने की होगी
घनी बरसात,दाने ,कब बीज बनकर अंकुरित
हुए और कब पौधे से वे पेड़ बने और कब
दरख़्त बनकर मकान के बीच से फटे ,पुराने
महल की दास्तां बयां करते उन्हीं परिंदों के
घोंसलों की आशियां बने,खबर भी न होगी!
उस महल के लोगों को कब पीपल के
पौधे से दरख़्त बनने का सफर, किसी ने
तो देखा होगा,!शायद किसी हादसे का शिकार
किसी आपदा के हवाले या पलायन के मतिभ्रम
के शिकार इस महल के खूबसूरत नजारे छोड़
अलविदा कहकर रूखसत हुए होंगें आधी हकीकत
आधा ही फ़साना छोड़कर महल के दरों दीवार
पर अपनी यादें चस्पां कर बंजर और जर्जर होने
को बेबस और लाचार रहे होंगें ,पुरानी ठाकुर बाड़ी
के बेमिसाल बने महल की नक्काशी और कलाकृति
बेसाख्ता अपने हुक्मरानों की ललितविधाओं
का परिचयकराते हैं आज भी खड़ी है
ईमारत अपने दरख्तों से करती शिकायत ,
कहती ,कहो अपने परिंदों को परवाज़ भरे
मेरे महल के राजकुमार राजकुमारियाओं
को संदेशा दे आए
मेरे पाये में अब वो बात नहीं
जैसे बूढ़ी हड्डीयों में वो ताकत नहीं
कब गिरकर चकनाचूर हो जाऊं
ऐ दरख़्त ! तेरे ही घोंसलों पर
कहीं जाकर बेजार न हो चलूं
,आंसूओं भरे नैना अंतिम सांसें
गिन रही प्रतीक्षा की घड़ियां,
तमाम रातों को लंबी कर रही
कभी तो आए मेरे मुकद्दर का मौसम
चिनार के रंग भी बदलते हैं
मेरे संसार को क्या बसाया नहीं जा
सकता इन दरख्तों से मेरे
खंडहर को मुक्त नहीं किया जा सकता ,
सालती है जिंदगी गोया
खड़ी ही !ईमारत करके वो
क्यों गया ?मेरे दिलों के अरमान में
आग लगाकर क्यों गया?
आने को कह दे एकबार जहां
भी है मेरा नूरे निगाह।
सूने पड़े आंगन में आए एक बार बहार ,
खूबसूरत से हों एहसास
,वीरान सा महल एक बार हो जाएं गुलजार
ठाकुरबाड़ी के ठाकुर जी भी नहीं सुनते पुकार
क्या वे भी हो चुके जर्जर और बेजान ?
ऐ,दरख़्त अपने परिंदों से कर दे आगाज।
आ जाए कोई रहनुमा बनकर ही मेरा खरीददार!
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1 month ago
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