एकांत ,सूनापन!या वीरान कहुं,
अकेलेपन की घुटन या चिर नीरवता,
का सुकुन कहुं,शांति और स्थिरता का आरंभ कहुं।
मैं क्या कहुं कुछ एहसास सुकून के हैं और कुछ सूनेपन के
बस मोह भयो धागे हैं जो विचारों में ही उलझते जाते हैं,।
बातें तो रोज होती हैं ,अपनों से कुछ रिश्तों से रक्त संबंधों से ,
पर वो बातें हर रोज अनकही रह जाती हैं,जो कहना चाहती हुं,
किसी के पास वो एकांत का सुख नहीं
जो सुन सके एहसासों की उन सांसों को
एक अदद जज़्बात भरे लम्हों की दरकार भी तो थी
पर वो भी छीन लिया एकांत के ही दुख ने
जिससे चाहा कि मन की सुनाऊं,
उसे फुर्सत नहीं क्योंकि वो भी अकेली है
काज बहुत से हैं फुर्सत से भी फुर्सत नहीं है
शांति से दो पल कोई जिरह भी नहीं करने देता,
एहसासों पर पहरे,बिठाकर रखते हैं लोग ,।
जिसे प्यार करते हैं उससे एकांत के सुख
की उम्मीद करते हैं लोग,कोलाहल और कलह
अप्रिय लगते हैं ,मन की बात मन में ही रख लेते हैं
एहसास के दम घूंटते हैं आंखों से आंसू झरते हैं
कुछ न कह पाने का दुख सालता है ये एकाकी पन
जहर की तरह लगता है ।
भीड़ जब बढ़ती है अपनों के बीच रहकर भी
मन एकांत चाहता है एकांत का सुख याद आता है
ये मन भी कैसा अजीब है कभी एकांत का सुख
तो एकांत में दुख ही दुख महसूस होता है।
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