आखिरी सफर ,था,वो तन्हा बैठी थी स्टेशन पर,
अमलतास के फूलों की खुशबू बिखरी थीं हवा में,
एक, दो , मुसाफिर टहल रहे थे समय के पहिये के साथ
प्रतीक्षारत मुसाफिर नजरें घुमाते चारों तरफ ।
अकेली लड़की सौम्यता से बैठी कोई उपन्यास पढ़ती
पन्ने पलटती ,मन उचाट सा घर के क्लेश को सोचकर उलझती
एक मुसाफिर ने थोड़ी सी जगह मांगी बेबाक और बेहिचक,
लड़की ने सरकते हुए अपनी जगह के बैग को रख लिया गोद में
मुसाफिर ने एक कप चाय पीने की पेशकश कर
शुक्रिया अदा करने की कोशिश में,
भांप लिया था उसके मन के बेचैनी को।
लड़की ने पन्ने पलटने की कोशिश में
,नजरें उठाई तो नज़रें मिली
मुसाफिर से जो आंखों ही
आंखों में जैसे उसे पढ़ रहा हो
लड़की ने तपाक से पूछा ऐसे क्या देखते हैं,?
कुछ बातें कहनी है ,
या अब कोई परेशानी है ।
नहीं परेशानी तो आपके चेहरे से झलकती है
मैं कुछ मदद करूं अगर आप कहती हैं,।
आप कहां जा रही हैं और कहां है आपकी मंजिल
स्टुडेंट तो लगती नहीं टीचर ही तो लगती हैं !
क्या क्या पढ़ाती,? हैं,लड़की ने बातें सुन कहकहे लगाए।
क्या इंसान है ये बिना मर्जी के सवालों पर सवाल दागे
पर कितना सुकुन था लड़की के चेहरे पर
कोई अपना तो था जो सवाल कर सुकुन ही दे रहा था।
ये सवाल ही तो उसे लड़की के करीब ला रहा था
बातों का सिलसिला शुरू हुआ
पहचान हुई सफर सुहाना लगने लगा
,स्टेशन पर लगा अमलताश भी मन को भाने लगा।
उसका ख्याल करना ,संभल कर सवाल
पूछना अजनबी
को भी अपना बना रहा था।
ट्रेन आ चुकी थी अपने रफ्तार पर थी
मुसाफिर ने लड़की के
सामान को यथा स्थान रखा,
बैठने का इंतजाम कर खुद ही खड़े
रहना उचित समझा,
भीड़ में न जाने क्यों उस लड़की ने उसे अपना समझा।
मुसाफिर ने उससे उसका नाम तक नहीं पूछा,
लड़की ने भी उससे पूछना मुनासिब नहीं समझा
पर एक अदद खामोशी थी जो दोनों को चुभ रही थी
वो कैसे पूछे ,क्या वो समझे
इसी उलझन में मंजिल आ चुकी थी
मुसाफिर ने मुस्कुरा कर कहा, मिलते हैं ,
फिर कहीं किसी मोड़ पर
ख्याल रखना अपना।
उपन्यास के अगले पन्ने पर मेरा ही नाम छपा है ,
ये कहकर तेज कदमों से वो ट्रेन से उतर चुका था,
मैंने उपन्यास देखा तो श्रीकांत झलक रहा था,
वो अजनबी अपनी यादें छोड़ गया था,
घर का क्लेश भी मिटा चुका था,
अब खालीपन नहीं मुसाफिर बनकर ही
सही मगर मीठी यादें दे गया था
कुछ कहने की कशिश छोड़ गया था !
भला सा वो मानुष दिल में उतर चुका था ।
अमलताश के फूलों ने फिर से हवा में खुशबू बिखेरा था,
किसी सफर में फिर मुलाकात हो
इसी चाहत को वो जन्म देकर गया था।
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1 month ago
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