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औरत के दुख..

                
                                                                                 
                            औरत ,से और की मात्रा हटा दें तो
                                                                                                

बन जाता है रत,जिसके बिना बस सब रत ही रत होता है
अधूरापन और सूनापन होता है ,घर हो या आंगन हो
औरत के ही पायल की झनकार से घर ,घर होता है
घर में लक्ष्मी का वास होता है।
जो घर में न हो औरत वो घर सुनसान और वीरान होता है
जर्जर और श्मशान होता है।
औरत ही जननी,औरत ही अन्नपूर्णा होती है
औरत ही प्रकृति,औरत ही संस्कृति होती है
औरत के होने से ही कुदरत खुशगवार होती है
औरत ही देवी औरत ही चामुण्डा होती है
औरत की शक्ति औरत ही भक्ति होती है
सृजन का आधार और स्तंभ भी औरत होती है
औरत को पूजा जाना ही परंपरा है
औरत का सम्मान ही आभूषण है
औरत को धन और दौलत की भूख नहीं
वो तो थोड़े से सम्मान से ही तुष्ट होती है
उसकी मुस्कान से ही घर में खुशियां आती हैं
औरत शब्द है स्वयं में गूढ़ अर्थ लिए अभी और व्याख्या बाकी है |
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1 month ago

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