प्यारा प्यारा गाँव मेरा
घग्घर नदी के तीरे।
सोना मेरे गांव की मिट्टी,
उगले धीरे धीरे।
नहीं भूल पाता मैं इसको,
बचपन जुड़ा हमारा।
खुशबू इसकी बसी श्वांस में,
रिश्ता पावन प्यारा।
दिल्ली में बसने पर भी,
याद सदा ही आती।
इसकी पावनता ही मानो,
है पुरखों की थाती।
खेतों की मेड़ों पर सजते,
अमरूदों के गुच्छे।
साथी-संगी संग तोड़ते,
गुच्छे अच्छे-अच्छे।
वह बचपन का चलना-फिरना,
अरु सावन के झूले।
हरियाली धरती की मोहक,
अब मोहन कैसे भूलें।
डाक्टर मोहन लाल अरोड़ा
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2 months ago
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