वक़्त रहते अगर ख़ुद से ही
बयां कर लिए होते अपने दर्द
तो ये ज़ख्म आज
इतने गहरे ना होते
हम बताते रहे उन्हें वफ़ा अपनी
और वो बेवफ़ाई समझते रहे
अगर वक़्त रहते खुद से कर ली होती वफ़ा
तो मायूस दिल पर आज इतने पहरे ना होते
के ढलती शाम में लेकर गमों के जाम
ताकते हुए चांद को
बहाए ना होते
गमों के आसूं
हम भी खिलखिलाते रहते
यूं उदासी भरे सवेरे ना होते
के दीदार ना किया होता
तेरी आंखों से ही तेरा
ना कुछ तेरा होता
ना कुछ मेरा
वक़्त सब अदा करता
तुझे भी और मुझे भी
समझा लिया होता इस
नादान दिल को वक़्त रहते
ना गुनाह करते नैनों से
ना आज तेरे होते
ख्याल आज भी वही है
तेरा और मेरा
वहीं चांद है वही रोशनी है
और वही है सवेरा
वक़्त रहते छुपा लेते
अपने लब्जों को
तो तुम आज मेरी महोब्बत के
लुटेरे ना होते
-कविता वर्मा
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश
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1 month ago
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