क्यों रूप पर इतना फ़िदा हुए हो
नाहक प्रेम जताते हो ॥
आधी रात को सूनी अटारी
सांप पकड़ चढ़ आते हो ॥
इस माटी के देह से
इतना क्यूँ है नेह
तीन लोक के नाथ से
स्वामी करिये प्रेम
नाव समझ मुर्दा पर चढ़ के
नदी पार हो जाते हो
मोह त्याग कर नाथ हे
करिये प्रभु का ध्यान
सफल मनोरथ हो जायेगा
हो जायेगा कल्याण
इस माया रुपी नदी में
डुबकी नाहक लगाते हो
- शम्भू नाथ कैलाशी
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