पिताजी की जेब....
पिताजी की जेब में
कितने सपने जीते थे
उन की जेब में नोटों की गड्डी नहीं
घर के सुख दुःख आँखमिचौली खेलते थे
उस में बेटे की शिक्षा का भार भी था
उस में बेटी की शादी शहनाई भी थी
उस में पत्नी को दिए अधूरे बचन भी थे
उस में खुद की इच्छाओ की समाधि भी थी
उस जेब में जब भार हो तो
घर की दीवाले रहती दैदीप्यमान
उस जेब को खांसी हो तो
छत से पानी टपकता था
उस जेब को कितने हाथ टटोलते थे
उस जेब कई हिसाब रहते थे
पर समय साला निकला जेबकतरा
जमा जो था उस को क्र गया खाली
उधार सब रख के हो गया फरार
अभी भी वो कुर्ता खूंटी पे टंगा है
उस की जेब में कितने जिव भटकते है
जेब को कहा पता है उस के कारण
जिंदगी कितनी तीतर बितर है
जेब ने कितना कुछ ख़ाक किया है
वो पिताजी की जेब थी
गरीबी रेखा की नीचे जीती थी
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