विघ्न बाधाएं बहुत हैं,घर बना कर देखना।
आंधियां भी आएंगी,शम्मा जला कर देखना।
ईंट से ही ईंट टकराने की सोची है अगर,
आग से ही आग पहले तुम बुझा कर देखना।
होगी जब मेरी जरूरत लौट कर आऊंगा मैं,
छोड़ कर नाराजगी वापस बुला कर देखना।
क्यों फलों के भार से नत शीश होता वृक्ष है,
उपलब्धियों के बाद अपना सिर झुका कर देखना।
Jatinder sharda (गजल का सफर )
-
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।