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शंख-नाद

shankh-naad
                
                                                                                 
                            एक नाद भयंकर उठ चुका है,
                                                                                                

रणभेरी बज उठी भयंकर है!
ये युद्ध बड़ा ही भीषण है,
लड़ना बनकर अभ्यंकर है!
संघर्षरत है मेरा भारतवर्ष,
जन-जन में चेतना जागी है!
देख दुर्दशा भारत माँ की,
हर लाल में वेदना जागी है!
डरो नहीं उनसे जिनमे,
थोडा सा भी पुरुषार्थ नहीं!
राष्ट्रधर्म को बढाओ आगे,
आगे न आये स्वार्थ कहीं!
बस डटे रहो बस लगे रहो,
पूरा गणतंत्र है साथ तुम्हारे!
तुम्ही हो गण के नायक और,
तुम्ही माँ के लाल दुलारे!
टूट पडो तुम रिपुदल पर,
न बचने पाए कोई उनमे से!
जो पड़ी हुई निश्चेत भारती,
आ जाए बाहर वो सदमे से!
अब बस करना है प्राण हमको,
संघर्ष हमारा और मार्ग प्रशस्त!
न रोक सके विपदा हमको,
न रोक सके हमको ये वक्त!
बस बढ़ेंगे आगे हम सब,
आलोकित होगी ये धरा!
जब विजय होगी हम सबकी,
तब होगी धन्य वसुंधरा!

हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। 

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5 years ago

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