मैं तुझे चाहूं केवल बस मैं
तुम मुझे चाहो तेरे बस में
इतना ही काफी नहीं है जहां में
परिणय में बंधना किस्मत के बस में
मैं तुझे चाहूं केवल बस मैं।
झूठे वादें झूठी दिलासा
यह तो कतई नहीं मेरे बस में
तुम ही कहो कैसे प्रीत निभाऊं
मैं तुम्हें चाहूं केवल बस मैं।
केवल मानव नहीं हैं हम-तुम
जात-पात और ऊंच-नीच में
एक ही धरा पर बटें समूह में
मैं तुझे चाहू केवल बस मैं।
भाव-करुणा की बातें ना कर
इस पर भारी उनकी प्रथा है
झूठी यश और संकुचित जहां में
मैं तुम्हें चाहूं केवल बस मैं।
इस वसुधा की अपनी ही लेखा
राधा-किशन भी रहे अधूरा
शायद इसलिए उनकी पूजा
मैं तुझे चाहूं केवल बस मैं।
पाश नहीं कोई बांध ले मुझको
पर समाज का बोध है हमको
अपनी भी कुछ जिम्मेदारी
मैं तुझे चाहूं केवल बस मैं।
हम जैसों की तो लंबी सूची है
निश्चल निस्वार्थ मन है अपना
औरों के खुशी को गम को लगा लूं
मैं तुझे चाहूं केवल बस मैं।
हरिओम शंकर
दरभंगा, बिहार।
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