उन्नत छवि है , उज्जवल तेज ,
विफल वो करता , सबके खेल।
मन में नही है कोई उस के भेद ,
राष्ट् विकास और प्रथम है देश।
मन की बात में छिपा है मेल,
स्वच्छ रहता है उसका वेष।
राष्ट् सम्पदा है उसकी देह,
नीयत में नही उसके संदेह।
ईश कृपा उस पर है नेक,
विचारों में है अतिशय वेग।
भ्रष्ट नही अब रहेगा शेष,
स्वार्थ से नही है उसका प्रेम।
संतों के जैसे है उस के बैन,
छोड दिया गृहस्थी का सेज।
जनसेवा और स्वच्छ हो देश,
ऊँचे है उसके जीवन संदेश।
जन जन की है आशा ढेर,
कर देगा वो दुर्दिन फेर ।
राष्ट् सुरक्षा में ना हो देर,
यहीं तो है जनमत संदेश ।
भ्रष्टाचारी अब होगा बेचैन,
मिट जाये गी दुख की रैन।
कर्मठ पाये ,गा सब सुख चैन ,
तभी नमो नमो करता ये देश।
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