यह जहान मानव जीवन के बिना वीरान है,
फ़िर क्यों करते हम प्रकृति का नुकसान हैं,
क्या हमें हमारे मनुष्य होने पर गुमान है,
बेजुबान जीवों की हत्या करता मनुष्य हैवान है
यह जहान मानव जीवन के बिना वीरान है,
इस कदर ना नष्टकर प्रकृति को, क्यूं वह हैरान है,
अपने स्वार्थ में जीवन जीता मनुष्य क्यूं परेशान है,
देती प्रकृति सब कुछ इसे फ़िर भी बनता नाशवान है,
इन सब प्रकोप से नहीं बच सकता इंसान है,
तुम को देखता ऊपर भी कोई भगवान है
यह जहान मानव जीवन के बिना वीरान है,
घोलकर ज़हर खुद ही हवाओं में,
अब हर शख्स मुँह छुपाये घूम रहा है......
सारे मुल्कों को नाज था अपने अपने परमाणु पर,
क़ायनात बेबस हो गई एक छोटे से कीटाणु पर...
# गौरव ललवानी #
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