इक पेड़ है पिता जो धूप में अड़ा है..
दिन रात के मिटाकर फासले खड़ा है..
छत्र छाया में पले बढ़े नवांकुरों को,
बचाने आंधियों से अकेला लड़ा है..
-सागर तन्हा
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