हसरत है देखने की जो मरने न दे मुझे
ये चाह है कमाल बिखरने न दे मुझे
देखेगा आइना भी शिकायत ये उसको है
शीशे के सामने वो सँवरने न दे मुझे
सुनना उसे गँवारा नहीं एक लफ़्ज़ भी
इज़हार मेरे प्यार का करने न दे मुझे
ये कौन से जहान में ख़्वाबों में आ गया
है कोई सामने जो गुज़रने न दे मुझे
जाने कहाँ कहाँ पे भटकता फिरा हूँ मैं
ये घूमने की लत ही सुधरने न दे मुझे
तस्वीर सोचता था सजाऊँगा मैं तेरी
तेरे ख़याल रंग भी भरने न दे मुझे
'आनन्द' आजकल का ज़माना ख़राब है
कोई भी मुश्किलों से उबरने न दे मुझे
~ डॉ आनन्द किशोर
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