सिर्फ बातों की मंजूरी हुई थी शनासाई पर
कि अरमान मचल बैठे तेरी अंगड़ाई पर ।
मेरा तेरी मोहब्बत पे कोई हक नही है
हक है मेरा तो सिर्फ तेरी बेवफाई पर ।
ये गमों के घाव अभी भरे नहीं है मेरे
निशानी रह गई है तेरि एक कलाई पर ।
मोहब्बत का कत्ल हुआ है तेरी दहसती में
इक जमाना थूकेगा जरूर तेरी जफाई पर ।
तेरे इश्क़ का भी अजब ईनाम मिला मुझे
ये दुनिया हंस रही है अब मुझ सौदाई पर ।
हुस्न-ए-सूरत से बेचारे आईनों ने चोटे खाई है
'तौबा' नजरें भी न गिराएं हम तेरी परछाई पर ।
दिल-ए -कश्मकश बड़ी हिम्मत से पाया तुझको
ये किसकी नजर लग गई मेरी इस कमाई पर ।
आंखों से खूं रुला रही है तेरी तन्हाई मुझे
दिल-ए-कातिल जरा रहम कर इस हरजाई पर ।
- Diwakar Budakoti
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