मां का आंचल छोड़ चला
पिता का संबल तोड़ चला
भारत मां का प्यारा लाल
दुश्मन का मुंह तोड़ चला
भाई का साथ छोड़ चला
बहन का वादा तोड़ चला
सरहद का रखवाला बन
नाम शहीदों में जोड़ चला
प्रेमिका का दिल तोड़ चला
पत्नी का कंगन फोड़ चला
मिट्टी की आन की खातिर
वतन का झंडा ओढ़ चला
बेटी के अरमान अधूरे छोड़ चला
बेटे के प्यारे सपनें तोड़ चला
चिता की अग्नि में तपकर जलकर
जीवन का स्वाभिमान छोड़ चला
दोस्तों को अकेला छोड़ चला
सम्बंधों से मुंह मोड़ चला
धूल में धूल के जैसा होकर
सबको दिलों से जोड़ चला
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।